प्रेमभाव मानव जीवन के जीवन में होना जरूरी है। मानव जीवन में व्यक्ति एक-दूसरे से इसी भाव के द्वारा ही जुड़ा रहता है
हमारे समाज में लोगों को अपने अंदर इस भाव को बढ़ावा देना चाहिए जिससे होगा क्या कि इस भाव से लोग एक-दूसरे से मिलजुल कर अपना जीवन यापन करेंगे।
हमारे घर-परिवार में यदि परिवार में प्रत्येक सदस्य के अंदर एक-दूसरे के प्रति स्नेह, प्रेम-भाव,व मान-सम्मान है तो वह परिवार आर्थिक रूप, समाजिक रूप तथा राजनीतिक रूप से विकास करता है।उस घर के प्रत्येक सदस्य अपने प्रेम-भाव के द्वारा किसी भी समस्या का समाधान आपस में मिलकर कर लेंगे।
प्रेमभाव को हमारे समाज में सर्वोच्च भाव माना जाता है।
जहां पर घर के प्रत्येक सदस्य में एक-दूसरे के प्रति यह भाव नहीं होता है। वहां पर वह परिवार आर्थिक रूप, समाजिक रूप तथा राजनीतिक रूप से विकास नहीं करता है वे अपने में ही एक-दूसरे से उलझते हुए अपना जीवन बिता देते हैं। वे अपने समस्या का समाधान नहीं करते हैं।
इसलिए परिवार में एक-दूसरे के प्रति प्रेम-भाव का होना जरूरी होता है।
यह भाव कहीं भी हो सकता है। मां और पुत्र का प्रेम-भाव, पति-पत्नी का प्रेम-भाव, मुखिया का अपने परिवार में सदस्यों के प्रति प्रेम-भाव, समाज में प्रेम-भाव, प्रेमी-प्रेमिका का प्रेम-भाव, दोस्त में प्रेम-भाव आदि प्रकार के प्रेम-भाव हो सकतें हैं।
मां और पुत्र का प्रेमभाव
इस पृथ्वी पर मां और पुत्र का वात्सल्य, स्नेह, प्रेमभाव का दर्जा सर्वोच्च है। पृथ्वी को हम मां का दर्जा दिये हैं। वह भी हमें अपने बच्चों की तरह पालन-पोषण करती है।
माता और पुत्र का रिश्ता वह रिश्ता होता है जिसमें अटूट बंधन, विश्वास, वात्सल्य भरा होता है। मां किसी भी परेशानी का सामना करके अपने बच्चों का पालन-पोषण करती है । उसको दुनिया की हर सुख-सुविधा देने की कोशिश करती है।
ठीक उसी प्रकार से बेटा भी अपने माता को स्नेह, प्रेम करता है।वह अपने मां के जीवन के लिए अपने जीवन को दांव पर लगाने के लिए तैयार रहता है
माता और पुत्र के बीच वात्सल्य और प्रेमभाव इसी प्रकार से होता है इनके दोनों के बीच निस्वार्थ प्रेमभाव होता है।
पति-पत्नी में प्रेमभाव
पति-पत्नी में प्रेमभाव का होना जरूरी होता है। पति-पत्नी का रिश्ता अटूट बंधन से बंधा हुआ होता है। पति-पत्नी के ऊपर घर-परिवार की पूरी जिम्मेदारी होती है।
पत्नी घर के खान-पान एवं उससे संबंधित सभी कार्य जैसे कपड़ा साफ करना, झाड़ू पोछा लगाना आदि कार्य करती है इसलिए पति का फर्ज बनता है कि वह अपने पत्नी के प्रति प्रेम भाव रखें । उसे समझे, उसका मान-सम्मान करें तो वह पत्नी भी अपने पूरे जिम्मेदारी को संभालती है। वहीं पर पति भी अपने घर की आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाता है । वह अपने घर को चलाने के लिए नौकरी, स्वरोजगार आदि विधि द्वारा इनकम जनरेट करता है।वह अपने घर की पूरी जिम्मेदारी को संभालता है ।
तो इस प्रकार से पत्नी का भी फर्ज बनता है कि वह भी अपने पति का मान-सम्मान करें,उसे समझे, उससे बातचीत करें।
इस प्रकार से यदि पति-पत्नी दोनों एक दूसरे को समझते हुए अपना कार्य करेंगे तो निश्चय ही उस घर में प्रसन्नता एवं शान्ति होगी।
इसलिए पति-पत्नी को चाहिए कि वह अपना जीवन एक-दूसरे के प्रति प्रेम भाव से गुजरे।
प्रेमी-प्रेमिका में प्रेमभाव
प्रेमी-प्रेमिका में प्रेम भाव होता है। और वे इसी प्रेम भाव से वे एक-दूसरे से जुड़े होते हैं।
प्रेमी को चाहिए कि वह अपनी प्रेमिका को समझें। वह उससे संवाद करें और प्रेमिका को भी चाहिए कि वह अपने प्रेमी को समझें और उससे बातचीत करें।
प्रेमी-प्रेमिका की दुनिया इस दुनिया से अलग दुनिया होती है।वे एक-दूसरे में खोये रहते हैं।उन दोनों को अपने आप में एक अलग संसार होने का आभास होता है।
इस पृथ्वी पर भगवान ने पुरुष और स्त्री को बनाया है और दोनों के दिलों में प्रेम भाव भरा हुआ होता है। क्या है कि यदि इस पृथ्वी पर यदि पुरुष ही पुरुष रहेगा या फिर स्त्री ही स्त्री रहेगी तो इस सृष्टि का विनाश होना संभव है।
इसलिए भगवान ने दोनों को अलग-अलग बनाया है। इस प्रकार से कोई भी लड़का लड़की की ओर आकर्षित होता है तो वहीं पर कोई भी लड़की लड़के की ओर आकर्षित होती हैं, कोई युवक किसी युवती की ओर आकर्षित होता है तो वहीं पर कोई भी युवती किसी भी युवक की ओर आकर्षित होती हैं।
यह सब ईश्वर की महिमा होती है।
इस प्रकार से किसी भी प्रेमी-प्रेमिका को आपस में प्रेम भाव के साथ रहना चाहिए। यही प्रेमभाव की परिभाषा होती है।