प्रेम और व्यवहार मानव जीवन का एक अभिन्न अंग है।मानवीय समाज में व्यक्ति एक-दूसरे के व्यवहार के द्वारा ही अपना जीवन गुजर-बसर करते है।
प्रेमभाव समाज का सर्वोच्च भाव है। प्रेमभाव के द्वारा मानव अपने जीवन में सब-कुछ प्राप्त कर सकता है। बिना इस भाव के मानव जीवन बेकार हो जाता है।
हमारे युवाओं को अपने समाज में प्रेम और व्यवहार का महत्व लोगों को बताना समझाना चाहिए।
युवाओं को अपने अन्दर प्रेमभाव को समाहित करना चाहिए।
प्रेम और व्यवहार
प्रेमभाव
मानव समाज में व्यक्ति को एक-दूसरे के साथ प्रेम के साथ रहना चाहिए। प्रेम के द्वारा लोगों में आपसी भाई-चारा को बढ़ावा मिलता है।
प्रेमभाव के द्वारा युवा को समाज में मान-सम्मान, इज्जत मिलता है। इस के द्वारा लोगों में एकता बनी रहती है।
प्रेम कई प्रकार से हो सकते है। बाप-बेटे का प्रेम, मां-बेटे का प्रेम, पति-पत्नी का प्रेम, दोस्त का प्रेम, भाई-भाई का प्रेम,बहन-बहन का प्रेम, भाई-बहन का प्रेम आदि प्रकार से प्रेम के अलग-अलग रूप होते हैं।
मानव को अपने हर रिश्ते संबंधी से प्रेमभाव के द्वारा ही जीवन-यापन करना चाहिए। एवं खुशहाल जीवन जीने की कोशिश करना चाहिए।
जिस मानव के पास प्रेमभाव है वह इस पृथ्वी पर सबसे सुखी आदमी होता है।वह अपना जीवन अच्छी तरह से जीता है।
प्रेम और व्यवहार
व्यवहार
मानव समाज में व्यवहार का अपना एक अलग ही महत्व होता है। हमारे युवाओं को चाहिए कि वे अपने समाज में लोगों से अच्छा व्यवहार करें।
इस व्यवहार के द्वारा उनको समय-समय पर मदद भी मिल सकती है। यदि किसी किसी आदमी का व्यवहार समाज में लोगों से अच्छा नही है तो वह आदमी समाज में लोगों के द्वारा किसी भी प्रकार के मदद का पात्र नही होता है। वही पर यदि किसी भी आदमी का व्यवहार समाज में लोगों से अच्छा है तो वह आदमी समाज में लोगों के द्वारा किसी भी प्रकार के मदद का पात्र होता है।
व्यवहार भी कई प्रकार होते है जैसे घर-परिवार में मुखिया का व्यवहार, पिता का पुत्र के प्रति व्यवहार, दोस्त का दोस्त से व्यवहार आदि तरह से व्यवहार के प्रकार होते है।
जिस तरह से मुखिया का व्यवहार अपने घर-परिवार के प्रति होगा। यदि उसका व्यवहार अपने घर-परिवार के प्रति अच्छा होगा तो वह परिवार सभी तरह से खुशहाल जीवन व्यतीत करेगा। वही पर यदि मुखिया का व्यवहार अपने घर-परिवार के प्रति खराब होगा तो वह परिवार सभी तरह से दुखमयी जीवन व्यतीत करेगा।
उसी तरह से यदि पिता अपने पुत्र के प्रति क्रोधपूर्ण व्यवहार करेगा तो बदले में वह भी अपने पिता से क्रोधपूर्ण व्यवहार करेगा।
यही होता है यह प्रकृति का नियम है
तो पिता-पुत्र दोनों एक-दूसरे के खिलाफ कार्य करेंगे तो उस परिवार का नाश हो जायेगा।
वही पर यदि पिता अपने पुत्र के प्रति प्रेमभाव-सा व्यवहार करेगा तो बदले में पुत्र भी अपने पिता के प्रति प्रेमभाव-सा व्यवहार करेगा।
यही होता है यह प्रकृति का नियम है
तो पिता-पुत्र दोनों एक-दूसरे के हित में कार्य करेंगे तो उस परिवार को समाज में मान-सम्मान, इज्जत मिलता है और वह परिवार दिन-प्रतिदिन उन्नति करता रहता है।
इसी प्रकार से दोस्त का दोस्त से जिस तरह का व्यवहार होगा।उसी तरह से उसका परिणाम होता है।
इस पृथ्वी पर मां और पुत्र का व्यवहार निस्वार्थ होता है।इनका आपस में एक-दूसरे के प्रति व्यवहार स्नेहमय होता है।
मां अपने पुत्र के लिए इस दुनिया की हर कष्ट पीड़ा सहने को तैयार होती है तो पुत्र भी अपने मां के लिए इस दुनिया की हर खुशी उसके कदमों में देने के लिए कोशिश करता है। प्रेम और व्यवहार।
निष्कर्ष
अतः हम उपरोक्त वाक्यांश के आधार पर यह कह सकते है कि मानव समाज में यदि मानव को रहना है तो उसे लोगों से प्रेमपूर्वक व्यवहार करना चाहिए। जिससे समाज को एक अच्छा संदेश जाता है। मानव अपना जीवन इस प्रेम और व्यवहार के माध्यम से सुखमय जीवन व्यतीत करता है।
प्रेम और व्यवहार।
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