कर्मभाव मानव जीवन का एक अभिन्न अंग है। मानव समाज में कर्मभाव को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। प्रत्येक मानव को अपने जीवन में इसको महत्वपूर्ण स्थान देना चाहिए।
हमें अपने जीवन को सुचारू से चलाने के लिए धन की जरूरत पड़ती है। जिससे हम अपने दैनिक जरूरत जैसे रोटी, भोजन,कपड़ा आदि की पूर्ति करते हैं।
हमें अपने घर परिवार के भरण-पोषण के लिए धन की जरूरत पड़ती है। जिसकी पूर्ति हम किसी भी रोजगार कार्य को पूरा कर उससे धन प्राप्त कर उसकी पूर्ति करते है।
मानव जीवन प्राचीन समय से लेकर अभी तक और आगे भविष्य में भी इसी कर्मभाव पर ही टिका रहेगा। नहीं तो बिना कोई कार्य किये इंसान अपना पूरा जीवन विनाश कर लेगा।
मानव दो रूप से कर्मभाव करता है शारीरिक मेहनत या फिर मानसिक मेहनत।इन दोनों के लिए मनुष्य को अपने वीर्य की रक्षा करना चाहिए।
हमें अपने बच्चों को बचपन से ही कर्मभाव के बारे में बताना समझाना चाहिए। कि लोग किस किस तरह से अपना जीवन अपना करते हैं। उनका अवलोकन उन्हें कराना चाहिए।
उन्हें बताना चाहिए कि इस दुनिया में मानव अपना जीवन चलाने के लिए शारीरिक एवं मानसिक तौर पर कार्य कर अपना गुजारा करता है।
माता-पिता एवं अभिभावक का फर्ज बनता है कि वे अपने बच्चों को शारीरिक रूप से एवं मानसिक रूप से मजबूत बनाएं। उन्हें वीर्य के महत्व के बारे में बताना चाहिए की किस तरह से वे वीर्य के संचय हम अपने शरीर को मजबूत एवं मानसिक रूप से स्वस्थ हो सकते हैं। और हम अपने कर्मभाव को अच्छी तरह से कर सकते हैं।
वहीं पर हम वीर्य के नाश से अपने शरीर को खोखला एवं मानसिक रूप से कमजोर बना लेते हैं।
इस प्रकार से हम चाहे तो अपने बच्चों को शारीरिक रूप से मजबूत एवं मानसिक रूप से स्वस्थ बनाकर उनके जीवन को उज्जवल बना सकते हैं।
नहीं तो उनको शारीरिक रूपसे खोखला एवं मानसिक रूप से कमजोर बनाकर उनके जीवन को अंधकार में डाल सकते हैं।
अतः हमें अपने बच्चों को शारीरिक रूप से मजबूत एवं मानसिक रूप से स्वस्थ बनाना चाहिए। जिससे वे आगे चलकर हमारा सहारा बन सके। क्योंकि इस दुनिया में शारीरिक रूप एवं मानसिक रूप से मेहनत व कार्य किये जाते हैं।
कर्मभाव का मानव जीवन पर प्रभाव
इस दुनिया में प्रत्येक इंसान अपने कर्म और कर्मभाव के द्वारा पहचान जाता है और मान सम्मान को प्राप्त करता है।
हमारे युवा लोग कोई कर्म क्यों नहीं कर पाते हैं क्योंकि वे अपने करियर को लेकर कंफ्यूजन में रहते हैं।
किसी भी इंसान के लिए उसके कर्म का वैल्यू तभी है जब वह अपने कार्य को पूरी मेहनत व दिल लगाकर करता है एवं उससे होने वाली आय से संतुष्ट रहता है। वही कर्म इंसान को करना चाहिए।
किसी भी युवा को कोई भी कार्य करने से पहले उसे अपनी रुचि एवं शारीरिक क्षमता तथा मानसिक क्षमता का अवलोकन जरूर कर लेना चाहिए। क्योंकि यदि वह बिना अवलोकन किये हुए ही किसी भी कार्य को करता है तो उसके उसमें सफल होने का चांस न के बराबर होता है।
और यदि वह किसी भी कार्य का अवलोकन करके उस कार्य को करता है तो उसमे उसके सफल होने का चांस लगभग 100% रहता है।
अतः हमें बहुत सोच-समझकर कर ही किसी भी कार्य को करना चाहिए। यही मानव कर्मभाव का मूलमंत्र है।
कर्मभाव के प्रकार
कर्मभाव मूल रूप से दो प्रकार के होते हैं शारीरिक कर्मभाव एवं मानसिक कर्मभाव।
अभिभावक को अपने बच्चों से किसी भी कर्म को छोटा या बड़ा होने का बखान नहीं करना चाहिए। बल्कि उनके कर्म करने की उत्साह को बढ़ाना चाहिए।
सभी बच्चे मासूम होते हैं वे सभी एकसमान होते हैं इसलिए उन्हें समाज में सभी को समान अधिकार मिलना चाहिए।
बचपन में ही उन्हें शारीरिक रूप से मजबूत बनाने की कोशिश करना चाहिए। एवं उनको अच्छी शिक्षा व संस्कार देना चाहिए। जिससे वे मानसिक रूप से भी मजबूत बन सके।
बच्चों एवं युवकों को कल्पना की दुनिया में से निकलकर उन्हें अपने असली जीवन का सामना करना चाहिए। उन्हें अपने आसपास एवं समाज से सीख लेना चाहिए। उन्हें अपने जीवन में संघर्ष करते रहना चाहिए।
धीरे-धीरे प्रैक्टिकल जीवन जीने की कोशिश करना चाहिए। तभी जाकर उन्हें जीवन की कटु सच्चाई का पता लग सकेगा। उन्हें नया-नया प्रयोग करते रहना चाहिए।
जिससे वह निखर कर एक बेहतर जीवन यापन कर सकेंगे।
बहुत से लोग बिना कोई संघर्ष, कर्म किए हुए ही इस असली जीवन को छोड़ कर। कल्पनीय दुनिया की सुख-समृद्धि जीवन भर तलाशते रहे जाते हैं। और अन्त में उनके हाथ कुछ भी नहीं लगता है।
अतः हमें अपने जीवन में कर्मभाव को प्राथमिकता एवं प्रधानता देना चाहिए।
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