प्राइवेट नौकरी के नुक़सान हमारे युवाओं को बहुत होता है। इसमें युवा को उसके कार्य के हिसाब से पैसा नही दिया जाता है।
हमारे देश में ज्यादातर युवा वर्ग के लोग अपना-अपना घर-परिवार को चलाने के लिए किसी दूसरे शहर में जाकर वहां पर नौकरी करते है।
गुजरात, दिल्ली, मुम्बई जैसे-जैसे बड़े-बड़े शहरों में नौकरी करते है। और अपना जीवन यापन करते है।इसमें उनको अपने गांव,घर-परिवार से दूर रहना पड़ता है। जिसका असर उनके दिलो-दिमाग पर पड़ता है।
शहर में वे लोग एक मशीनी उपकरण में बदल जाते है।उन लोगों की जीवन-शैली खराब होती जाती है। शहरों में उन्हें गांव की अपेक्षा न तो वहां पर अपनापन महसूस होता है और न ही वहां पर उनका मन लगता है ।
फिर भी युवा लोग अपने घर-परिवार को चलाने के लिए शहरों में रहकर धन कमाते है। जिससे उनका घर-परिवार चल सके।
इस तरह से प्राइवेट नौकरी के नुक़सान हमारे युवाओं को होता है।
प्राइवेट नौकरी के नुक़सान प्राइवेट कम्पनी द्वारा
सबसे पहले तो प्राइवेट नौकरी का कोई भरोसा नही होता है कि वह हमारे युवाओं को कब नौकरी से निकाल देगी।
इससे होता क्या है कि जो युवा अपने घर-परिवार से दूर बाहर दिल्ली, मुम्बई, गुजरात जैसे बड़े-बड़े शहरों में किसी कम्पनी में नौकरी करता है और उस कम्पनी में उसे भरोसा होता है।
यदि अचानक वह कम्पनी उस युवा को नौकरी से निकाल देती है तो वह युवा इस अचानक कम्पनी के इस फैसले से बिखर जाता है। और बेरोजगार हो जाता है।
इस बीच जब तक वह किसी दूसरे कम्पनी में नौकरी पा नहीं जाता है।तब तक उसे तमाम तरह की परेशानी का सामना करना पड़ता है।
इसी तरह से यह प्रोसेस चलता रहता है और हमारा युवा भटकता रहता है। तथा इसी तरह का जीवन जीने के लिए मजबूर हो जाता है।
इसी तरह से प्राइवेट नौकरी के नुक़सान होते है।
प्राइवेट नौकरी के नुक़सान प्राइवेट नौकरी के द्वारा युवाओं का शोषण
प्राइवेट नौकरी में हमारे युवा चाहे जितना ही मेहनत क्यों न करें उस कम्पनी को आगे बढ़ाने के लिए। परन्तु उन्हें अपमान, बेइज्जत से होकर गुजरना पड़ता है।
हमारे युवा को प्राइवेट कम्पनी में मालिक, मैनेजर, सुपरवाइजर आदि के द्वारा तमाम तरह की परेशानी का सामना करना पड़ता है।वे लोग आदमी को आदमी नही समझते है। उन्हें इंसान नही बल्कि एक मशीनी उपकरण समझते है। और अपनी मनमानी तरीके से उनसे कार्य करवातें है।
युवा वर्ग किसी कारणवश कम्पनी के समयानुसार नही पहुंच पाता है तो उसकी सैलरी में से उस दिन का पैसा काट लिया जाता है।
यदि वह अपने किसी रिश्तेदार के यहां शादी-ब्याह को अटेंड करता है और वह यदि कुछ ज्यादा दिन बाद कम्पनी में जाता है तो वहां पर उसे धक्के मारकर बाहर निकाल दिया जाता है। और उसे उस नौकरी से बाहर निकाल दिया जाता है।तब वहां पर आदमी एक मशीनी पूर्जा बनकर रह जाता है।
इस तरह से प्राइवेट नौकरी के नुक़सान होते है।
प्राइवेट नौकरी के नुक़सान कार्य के हिसाब से सैलरी न मिल पाना
प्राइवेट कंपनी की सबसे बड़ी समस्या यह होती है कि वे अपने कर्मचारियों को उनके कार्य, मेहनत के हिसाब से सैलरी बहुत कम देती है।
यहां पर कमर्चारियों को कोई अधिकार नहीं मिलता है। वे अपने घर-परिवार को चलाने के लिए मजबूरीवश कम सैलरी पर ही कार्य करते है। और अपना जीवन यापन करते है।
इस प्रकार से प्राइवेट नौकरी के नुक़सान हमारे युवा वर्ग को होता है।
निष्कर्ष
अतः हम उपरोक्त लिखित पाठयाश के आधार पर यही कह सकते है कि प्राइवेट नौकरी के बजाय युवाओं को अपने शरीर और दिमाग का इस्तेमाल कर खुद का कोई अपना कार्य करना चाहिए। जिससे वह आत्मनिर्भर बन सके।
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